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Wednesday, 23 March 2016

यहां तो बस इंसान ही इंसान बनते हैं (#Poetry Series)

१.
पल  पल  तरसे  थे  उस  पल  के  लिए ,
मगर  यह  पल  आया  भी  तो  कुछ  पल  के  लिए  ,
सोचा  था  उसे  ज़िन्दगी  का  एक  हसीं  पल  बना  लेंगे  ,
पर  वो  पल  रुका  भी  तो  बस  एक  पल  के  लिए


२.
हर  पल  पे  तेरा   ही  नाम  होगा ,
तेरे  हर  कदम  पे  दुनिआ  का  सलाम  होगा
मुशिकिलो  का  सामना  हिम्मत  से  करना ,
देखना  एक  दिन  वक़्त  भी  तेरा  गुलाम  होगा



३.
कहीं   पर  धरम  बनते  हैं , कहीं  पर  इमां  बनते  हैं ,
कहीं  पर  हिन्दू ,सिख ,ईसाई 
तो  कहीं  मुसलमान  बनते  हैं ,
हमारी  महफ़िल  मैं  आकर  देख  ऐ  "साकी " 
यहां तो बस  इंसान  ही  इंसान बनते  हैं .


४.
नज़र  को  बदलो  तो  नज़ारे  बदल  जाते  है ,
सोच  को  बदलो  तो  सितारे  बदल  जाते  है ,
कश्तियाँ  बदलने  की  जरुरत  नहीं ,
दिशा  को  बदलो  तो  किनारे   बदल  जाते  है .


५ .
शाम  सूरज  को   ढालना  सिखाती   है ,
शमा  परवाने  को  जलना  सिखाती  है

गिरने  वाले  को  होती  तो  है  तकलीफ ,
पर  ठोकर  इंसान  को  चलना  सिखाती  है



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